गणेश चतुर्थी की कहानी क्या है? ganesh chaturthi vrat katha pauranik kahani in hindi
पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह की चतुर्थी को, गणपति जी का जन्म हुआ था।
इस उत्सव को मनाने के लिए व्रत भी रखा जाता है।
आइए जाने क्या है, गणेश चतुर्थी की कथा।
गणेश चतुर्थी का महत्व
सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी, एक प्रमुख त्योहार है।
इस त्यौहार पर बप्पा की कृपा, प्राप्त करने के लिए व्रत रखा जाता है।
परंतु गणेश चतुर्थी का व्रत कथा के पाठ बिना पूर्ण नहीं माना जाता।
जैसा कि भगवान गणेश शांति, और खुशियों के प्रतीक माने जाते हैं।
इन्हीं इच्छाओं की पूर्ति हेतु, गणेश चतुर्थी का व्रत रखा जाता है।
जो भी भक्त गणेश चतुर्थी की कहानी को पढता है, उसके संपूर्ण जीवन का कल्याण संभव है।
गणेश चतुर्थी व्रत की कहानी
गणेश चतुर्थी व्रत के लिए बहुत सी पौराणिक कथाएं हैं।
इन प्रचलित कथाओं के अनुसार एक समय शिव जी और पार्वती एक साथ बैठे थे।
नर्मदा नदी के किनारे पर बैठे मां पार्वती का मन चौपड़ खेलने को हुआ।
मां पार्वती के विनम्र आग्रह पर भोलेनाथ भी चौपड़ खेलने के लिए राजी हो गए।
उसी समय मां पार्वती के मन में विचार आया।
कि इस खेल में विजय और पराजय का, निर्णय कौन करेगा।
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भगवान भोलेनाथ द्वारा पुतले का निर्माण
ऐसे में भोलेनाथ ने कुछ तिनको से पुतले का निर्माण किया।
उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भगवान शिव ने उससे वार्तालाप किया।
उस पुतले को आदेश देकर शिव ने हार जीत का फैसला करने की जिम्मेदारी दी।
इसके पश्चात खेल आरंभ हुआ और तीनों बार मां पार्वती की विजय हुई।
परंतु पुतले के रूप में बालक ने भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया।
मां पार्वती द्वारा पुतले को श्राप
क्रोधित होकर माता पार्वती ने बालक को श्राप दे दिया।
इस बात से पुतला सहम गया और मां पार्वती से क्षमा याचना मांगने लगा।
पुतले ने कहा कि उस से अज्ञानता वश यह कार्य हुआ है।
इसलिए मां पार्वती उन्हें क्षमा करें।
इससे मां पार्वती भावनाओं में बह गए।
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उन्होंने बालक को इस श्राप से, मुक्ति पाने का तरीका बताया।
मां पार्वती ने कहा कि, गणेश पूजन के लिए नागकन्या यहां पहुंचेगी।
आप उनकी आज्ञा के अनुसार ही, गणेश जी का पूजन करें।
ऐसा विधि पूर्वक करने से, आप मुझे प्राप्त कर सकेंगे।
इस वार्तालाप के पश्चात मां पार्वती भोलेनाथ के साथ, कैलाश पर्वत पर विराजमान हो गई।
बालक की श्राप से मुक्ति
1 साल के उपरांत, नागकन्या उक्त जगह पर पहुंची।
नागकन्या से बालक ने विनम्र होकर आग्रह किया।
उनसे भगवान गणेश जी की व्रत और पूजन विधि की जानकारी मांगी।
संपूर्ण पूजा विधि को जानकर बालक ने श्रद्धा पूर्वक 21 दिन का व्रत रखा।
गणेश जी ने खुश होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए।
गणपति जी ने बालक से, मनचाही इच्छा मांगने का वर दिया।
बालक ने गणेश से आग्रह किया कि, उन्हें अपने पैरों पर चलने की शक्ति दें।
ताकि वे खुद चलकर कैलाश पर्वत पर अपने माता-पिता से मिल सके।
बालक ने यह कथा कैलाश पर्वत पर, भगवान भोलेनाथ को सुनाई।
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गणेश चतुर्थी के व्रत का फल
चौपड़ के खेल के बाद मां पार्वती, भगवान भोलेनाथ से रूठ गई थी।
बालक की कथा से भगवान शिव भी प्रभावित हो गए।
भगवान शिव ने भी 21 दिन का विधि पूर्वक व्रत किया।
जिससे मां पार्वती ने प्रसन्न होकर, भगवान शिव को माफ कर दिया।
इसके पश्चात शिव ने माता पार्वती को, इस व्रत विधि के बारे में बताया।
पूरी बात सुनने के बाद मां पार्वती के हृदय में, कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागी।
इससे मां पार्वती ने भी गणपति जी का, 21 दिन तक व्रत किया।
21 वे दिन भगवान गणेश स्वयं माता पार्वती से मिलने पधारे।
उसी दिन के पश्चात गणेश चतुर्थी के व्रत की मान्यता आरंभ हो गई।
इस व्रत को अत्यंत फलदायी और विघ्नहर्ता माना जाता है।
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