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Friday, December 13, 2024

एकादशियों की सम्पूर्ण जानकारी ekadashi vrat niyam jankari

ekadashi vrat niyam jankari साल मे कितनी एकादशी होती है?

हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में दोनों

पक्षो यानि कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में एकादशी का व्रत किया जाता है।

इस फरार एक महीने में दो और एक साल में कुल 24 एकादशी की

तिथियां पड़ती हैं।

एकादशी व्रत रखने से क्या लाभ होता है ?

शास्त्रों में एकादशी तिथि के व्रत को सभी

व्रतों में श्रेष्ठ बताया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति

पूरी श्रद्धा पूर्वक हर एकादशी का व्रत करता है, उसके सभी कष्ट

दूर हो जाते हैं। व्यक्ति के पापकर्म नष्ट हो जाते हैं तथा इस लोक

के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ekadashi vrat niyam jankari

हर एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है,

परंतु हर एकादशी का अपना एक अलग महत्व माना जाता है।

एकादशी किसे कहा जाता है ?

हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहा जाता हैं।

यह पढ़ क्या? हिन्दू व्रत पर्व Monthly Hindu Panchang

यह तिथि महीने में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद।

पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी

तथा अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी

कहा जाता हैं। इन दोनों ही प्रकार की एकादशियों का भारतीय

सनातन संप्रदाय में बहुत बड़ा महत्त्व है।

एकादशी के नाम लिस्ट

चैत्र: पापमोचनी एकादशी और  कामदा एकादशी

वैशाख: वरुथिनी एकादशी और मोहिनी एकादशी

ज्येष्ठ: अपरा एकादशी तथा पाण्डव निर्जला/रुक्मणी-हरण एकादशी

आषाढ: योगिनी एकादशी और देवशयनी एकादशी

श्रावण: कामिका एकादशी तथा पुत्रदा/पवित्रा एकादशी

भाद्रपद: अजा/अन्नदा एकादशी और पार्श्व एकादशी

अश्विन्: इंदिरा एकादशी और  पापांकुशा एकादशी

कार्तिक: रमा एकादशी, और देवोत्थान/प्रबोधिनी एकादशी

मार्गशीर्ष: उत्पन्ना एकादशी तथा मोक्षदा एकादशी

पौष: सफला एकादशी, पौष पुत्रदा/पवित्रा एकादशी

माघ: षटतिला एकादशी, जया/भैमी एकादशी

फाल्गुन: विजया एकादशी और आमलकी एकादशी

अधिक: पद्मिनी/कमला/पुरुषोत्तमी एकादशी तथा परमा एकादशी

त्रिस्पृशा एकादशी महायोग

जब एक ही दिन एकादशी, द्वादशी और रात्रि के अंतिम प्रहर

में त्रयोदशी भी एक साथ हो तो वह त्रिस्पृशा कहलाती है।

अगर सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक थोड़ी सी एकादशी, द्वादशी

तथा अन्त में किंचित् मात्र भी त्रयोदशी हो तो वह

त्रिस्पृशा-एकादशी कहलाती है।

एकादशी के नियम

एकादशी व्रत करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को दशमी

के दिन से कुछ अनिवार्य नियमों का पालन करना होता है।

एकादशी के दिन मांसाहार, प्याज, मसूर की दाल आदि वस्तुओं

 का सेवन नहीं करना चाहिए।

रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और भोग-विलास

से दूर रहना चाहिए।

एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन बिल्कुल भी ना करें।

जामुन, आम या नींबू के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ

साफ कर सकते है। पेड़ से पत्ता तोड़ना भी ‍वर्जित होता है। अत:

आप स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर उसका इस्तेमाल कर सकते है।

यदि यह संभव नहीं है तो पानी से बार बार कुल्ले कर सकते है।

फिर स्नान आदि कर मंदिर में जाकर गीता का पाठ करें, या

पुरोहित जी से गीता पाठ का श्रवण कर सकते है।

ईश्वर के सामने इस तरह प्रण करना चाहिए, ‘आज मैं चोर, पाखंडी

और दुराचारी मनुष्यों से बात नहीं करूँगा/करूंगी और ना ही किसी

का दिल दुखाऊँगा/ गी। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा/करूंगी।

‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मंत्र का जाप करें। भगवान विष्णु

का स्मरण करके प्रार्थना करें कि हे त्रिलोकीनाथ! मेरी लाज आपके हाथ

है, अत: मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करे।

यदि भूलवश किसी निंदक से बात कर ली तो भगवान सूर्यनारायण

के दर्शन कर लेना चाहिए तथा धूप-दीप से श्री‍हरि की पूजा कर के

क्षमा माँग लेनी चाहिए।

एकादशी मे क्या नहीं करना चाहिए?

एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इससे चींटी

आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल भी

नहीं कटवाने चाहिए। और ना नही अधिक बोलना चाहिए। अत्यधिक

बोलने से मुख से न बोलने वाले शब्द भी निकल जाने की संभावना रहती हैं।

इस दिन अपनी शक्ति के अनुसार दान करना चाहिए। परंतु स्वयं

किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण ना करें।

दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है। त्रयोदशी आने से पूर्व

व्रत का पारण करना चाहिए।

फलाहारी को गोभी, पालक, गाजर, शलजम, कुलफा का साग आदि

का सेवन नहीं करना चाहिए। अंगूर, बादाम, केला, आम, पिस्ता

इत्यादि अमृत फलों का सेवन कर सकते है। प्रत्येक वस्तु का प्रभु

को भोग लगाकर और तुलसी दल छोड़कर ग्रहण करे। द्वादशी के

दिन ब्राह्मणों को दक्षिणा , मिष्ठान्न दे। इस दिन क्रोध ना करे

और मधुर वचन बोले।

Aditi
Aditihttp://apnibat.com/
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