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Tuesday, October 14, 2025
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मनी प्लांट गलत दिशा में हो तो क्या होता है?

मनी प्लांट गलत दिशा में हो तो क्या होता है?

हर कोई अपने सपनों के घर को खूबसूरत तरीके से सजाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इस समय घर के निर्माण से लेकर घर बनाने तक हर कोई वास्तु शास्त्र का पालन करते है। बहुत से लोग सोचते हैं कि परिवार के सुख-समृद्धि को बनाए रखने के लिए वास्तु का पालन करना महत्वपूर्ण है। यदि किसी कारणवश घर में कोई वास्तु दोष आ जाता है। तो हर कोई उसे दूर करने का प्रयास करता है। 

वास्तु दोष को कौन दूर करता है?

हमारे पास वास्तु दोषों को दूर करने का एक ऐसा ही तरीका है जिसका अनुसरण कर आप वास्तु से संबंधित हर दोष से बच सकते हो। घर में पेड़ या पौधा लगाकर। वास्तु एक ऐसे पेड़ का जिक्र करती है। जो घर की सुंदरता बढ़ाने के साथ-साथ परिवार की भलाई में भी विशेष भूमिका निभाता है। 

यह पेड़ कोई और नहीं मनी प्लांट है। मनी प्लांट लगाने से कई सारे वास्तु संबंधित दोष दूर होते हैं। इस पेड़ का विशेष महत्व है। लेकिन ज्यादातर लोग इस पेड़ को अपने घर में जैसे मन वैसे लगा लेते हैं। वास्तु के अनुसार ऐसा बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। घर में मनी प्लांट कहां लगाना चाहिए, किस तरफ रखना चाहिए, वास्तु शास्त्र में नियम बताए गए हैं। यदि आप उस नियम का पालन करते हैं और घर में मनी प्लांट लगाते हैं तो आपके घर में उन्नति अवश्य होगी।

आग्नेय कोण में मनी प्लांट लगाए

वास्तु के अनुसार मनी प्लांट को घर के आग्नेय कोण में लगाना चाहिए। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा और आर्थिक गति में भी लाभ होगा। ऐसा माना जाता है कि घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में मनी प्लांट लगाना सबसे अच्छा होता है। गणेश जी की दिशा भी  दक्षिण-पूर्व दिशा होती है। इस दिशा में मनी प्लांट लगाने से परिवार के सदस्यों को सौभाग्य और आर्थिक लाभ मिलता है।

उत्तर-पूर्व दिशा में भूल से भी मनी प्लांट ना रखें

मनी प्लांट को कभी भी घर के उत्तर-पूर्व दिशा में नहीं रखना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। उत्तर एवं पूर्व दिशा के देवगुरु बृहस्पति होते हैं। वहीं शुक्र और बृहस्पति एक दूसरे के विपरीत होते हैं। इसलिए मनी प्लांट को उत्तर-पूर्व में लगाना शुभ नहीं माना जाता है। इससे घर बुरे प्रभाव से बचता है।

पूर्व या पश्चिम दिशा में भी मनी प्लांट ना लगाएं

मनी प्लांट कभी भी घर के पूर्व या पश्चिम दिशा में नहीं लगाना चाहिए। जब इस दिशा में मनी प्लांट लगाया जाता है तो परिवार के सदस्यों में मानसिक अवसाद पैदा होता है। इससे मतभेद बढ़ सकते हैं। आपको मनी प्लांट की ओर भी नजर रखाव होगा। ताकि वह फर्श को न छुए। अगर इस पेड़ की पत्ती जमीन को छूती है तो यह अशुभ माना जाता है। इससे आर्थिक नुकसान हो सकता है, घर में सुख शांति भंग हो सकती है।

ऊपर की तरफ प्लांट को बांध दें

मनी प्लांट को आप रस्सी या डंडे की मदद से ऊपर की तरफ भी बांध सकते हैं। इससे आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। मनी प्लांट में पानी डालते समय दूध की कुछ बूंदें डालें। इससे धनवान बनने की संभावना बढ़ जाती है। रविवार के दिन मनी प्लांट में पानी नहीं देना चाहिए।

घर के बाहर मनी प्लांट ना लगाएं

मनी प्लांट कभी भी घर के बाहर न लगाएं। मनी प्लांट धन और भाग्य का प्रतीक होता है। इसलिए इसे घर के बाहर नहीं लगाना चाहिए। वास्तु तंत्र के अनुसार अगर किसी की नजर खराब है, तो मनी प्लांट सूख सकता है। इसलिए इसे हमेशा घर के अंदर ही लगाना चाहिए।

यहाँ बिल्कुल नहीं चाहिए पूजा घर |घर में आती है धन समृद्धि की कमी

पूजा घर कहाँ नहीं होना चाहिए?

किसी भी शुभ कार्य के लिए घर से निकलते समय सभी लोग घर में ही पूजा-अर्चना करते हैं। पूजा  घर की सकारात्मक ऊर्जा सभी का विश्वास बहाल करती है। इसलिए आपको यह सोचना चाहिए कि अपने घर के देवता का घर कहां बनाना है। नहीं तो उनका घर यदि गलत जगह बन गया तो आपके परिवार पर संकट भी आ जाएगा। इसलिए वास्तु के नियमों के अनुसार जानिए कि अपने घर का मंदिर कहां बनाना चाहिए।

पूर्व दिशा का चयन करें

भगवान का पूजा घर हमेशा घर के पूर्व दिशा में होना चाहिए। कारण सूर्य पूर्व दिशा से ही निकलता है, इसलिए पूर्व दिशा को ही अच्छी ऊर्जा का स्रोत माना गया है। इस स्थान में पूजा पाठ करने से सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति को मिलता है।

वास्तु के अनुसार घर का मंदिर या पूजा कक्ष डिजाइन करते समय, यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घर का मंदिर वास्तु के अनुसार उचित दिशा में है या नहीं।

बृहस्पति को उत्तर-पूर्व दिशा का स्वामी माना जाता है, जिसे ‘ईशान कोण’ भी कहा जाता है। ईशान कोण को ईश्वर या भगवान का कोण माना जाता है। इस प्रकार यह भगवान/बृहस्पति की दिशा है। इसलिए घर क मंदिर भी इसी दिशा में रखा जाता है। इसलिए मंदिर को वहीं रखने की सलाह दी जाती है। 

इसके अलावा, पृथ्वी का झुकाव भी केवल उत्तर-पूर्व दिशा की ओर है और यह उत्तर-पूर्व के शुरुआती बिंदु के साथ चलती है। इसलिए यह कोना ट्रेन के इंजन की तरह है, जो पूरी ट्रेन को खींच लेता है। घर में मंदिर की दिशा भी ऐसी ही होती है – यह पूरे घर की ऊर्जा को अपनी ओर खींचती है और फिर आगे ले जाती है। 

वास्तु के अनुसार मंदिर की दिशा के अनुसार, घर के बीच में स्थित एक मंदिर – एक क्षेत्र जिसे ब्रह्मस्थान कहा जाता है – को भी शुभ माना जाता है और यह घर के निवासियों के लिए समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य ला सकता है।

किचन या बाथरूम के पास पूजा घर ना बनाएं

अपने बाथरूम या किचन के पास कभी भी किसी देवता का घर या पूजा घर ना बनाएं। यह आपके परिवार के लिए बुरा हो सकता है। दरअसल पूजा कक्ष के बगल में शौचालय नहीं होना चाहिए। लेकिन यह बात शत-प्रतिशत सत्य नहीं है।

यदि आपने अपना मंदिर सही दिशा में रखा है। तो आपको केवल इस बात का ध्यान रखना है कि मंदिर शौचालय की दीवार को ना छुए। ऐसे में आप शौचालय तो नहीं गिरा सकते लेकिन आप मंदिर को शौचालय की दीवार से छूने से बचा सकते हैं।

पूजा उपाय से भी लक्ष्मी आपके घर में नहीं है?

अगर आपका मंदिर सही दिशा और सही जगह पर है और उसके बगल में कोई शौचालय नहीं है, तो यह शानदार है।

सावधान रहें कि अपने मंदिर को गलत जगह और गलत दिशा में ना रखें क्योंकि यह आपके घर का ऊर्जा भंडार है।

शौचालय और पूजा कक्ष एक ही वास्तु क्षेत्र में नहीं हो सकते। यह कोई वास्तु दोष नहीं बनाता है। लेकिन उस क्षेत्र में पूजा करने से आपको बहुत अधिक पैसा खर्च करना पड़ेगा क्योंकि आपकी सारी सोच आपको उन चीजों पर पैसा खर्च करने के लिए प्रेरित करेगी। जिनका आप अंत में उपयोग नहीं करेंगे। जैसे कि शौचालय हमेशा धन या मन की स्पष्टता को छीन लेता है।

पूजा घर के दरवाजे को भी उचित दिशा में बनवाएं

पूजा घर की खिड़कियों और दरवाजे को हमेशा ही पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व दिशा में रखें। पूजा कक्ष में मूर्तियों को एक-दूसरे या दरवाजे के सामने भी नहीं रखना चाहिए। वे आदर्श रूप से उत्तर-पूर्व में स्थित होने चाहिए, और दीवार के बहुत करीब नहीं होने चाहिए।

अपने प्रवेश द्वार पर देवी-देवताओं की मूर्तियों और चित्रों को रखना शुभ माना जाता है। वास्तु के अनुसार, सौभाग्य, धन और समृद्धि का स्वागत करने के लिए आप अपने घर के प्रवेश द्वार पर गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियां और तस्वीरें रख सकते हैं।

लोहे का प्रयोग पूजा घर में कम करें

पूजा करते समय शुभ और पवित्र वस्तुओं के प्रयोग का विशेष ध्यान रखा जाता है। छोटी-छोटी चीजें शुभ होने पर ही पूजा का पूरा फल मिलता है। वहीं साधक की जरा सी भी लापरवाही पूजा को अशुभ बना सकती है।

ऐसे में पूजा में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों का खास ख्याल रखा जाता है। कई बार हमें इस बात की जानकारी नहीं होती है कि पूजा के दौरान कौन से धातु के बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए। आइए जानते हैं पूजा के समय किस धातु का प्रयोग करना शुभ होता है। धातु की वस्तु से पूजा घर बिल्कुल भी ना बनाएं। घर के मंदिर को बनाने के लिए आप संगमरमर या किसी अन्य पत्थर का उपयोग कर सकते हैं।

देवताओं के लिए तांबे का प्रयोग

धार्मिक मान्यता है कि तांबा देवताओं को बहुत प्रिय होता है। इसलिए किसी भी देवता की पूजा में तांबे के बर्तन का प्रयोग शुभ माना जाता है। इस संबंध में एक श्लोक का भी उल्लेख किया गया है।

“तत्तम्रभजने महम दियाते यत्सुपुष्कलम।

अतुल दस में प्रीतिर्भुमे जानी सुव्रते।

मंगलम चा पवित्रम चा ताम्रंते प्रियं मम।

और हम ताम्रम समुत्पन्नमिति में रुचि रखते हैं।

दीक्षितैरवई पदयार्ध्यदौ चा दियाते।

इसका अर्थ है कि पूजा के दौरान तांबा शुभ, पवित्र और भगवान को बहुत प्रिय होता है। तांबे के बर्तन में कुछ भी चढ़ाने से भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं। इसलिए पूजा के समय तांबे के बर्तनों का प्रयोग किया जाता है।

शनि भगवान को ही लोहे के बर्तन में प्रसाद दे सकते हैं। बाकि सबको तांबे या पीतल में देना शुभ होता है।

पूजा घर के रंगों का भी ख्याल रखें

हमेशा अपने पूजा घर का रंग सफेद, पीला या हल्का नीला रखें। पीला सकारात्मकता और खुशी से जुड़ा एक  रंग है। यह पूजा कक्ष के लिए एकदम सही पृष्ठभूमि की दीवार का रंग साबित होता है। उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुख वाला पूजा कक्ष, पीले रंग के साथ, वास्तु शास्त्र सिद्धांतों के अनुसार अधिकतम अच्छी ऊर्जा प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष का सफेद रंग पवित्रता और शांति का प्रतीक है, जिसे हम अपने पूजा स्थलों में खोजना चाहते हैं। भारत में स्मारकीय मंदिर हैं। जो भी इस सफ़ेद रंग योजना का जश्न मनाते हैं। उदाहरण के लिए, संगमरमर एक विश्वसनीय सामग्री है और आपके पूजा कक्ष में शांतिपूर्ण वाइब्स की प्रचुरता लाने के लिए एक बढ़िया विकल्प है।

हरा रंग ना केवल प्रकृति और जीवन की वास्तु-अनुमोदित अभिव्यक्ति है। बल्कि यह आपके घर से जुड़ने के लिए रंगों का एक सुंदर पॉप भी है। वास्तु के अनुसार हरे रंग के पूजा कक्ष के रंग के साथ, आप अपने पूजा कक्ष द्वारा प्रदान की जाने वाली ताजी और दिव्य ऊर्जा के एक कदम और करीब महसूस कर सकते हैं।

इस तरह एक सामान्य स्थान पर पूजा इकाई स्थापित करने के लिए उचित विचार की आवश्यकता होती है। पूजा घर का रंग ऐसा होना चाहिए कि यह आपके पूजा कक्ष के आसपास के क्षेत्रों की रंग योजना के साथ मिश्रित हो। नीले जैसे हल्के रंग वास्तु शास्त्र की आवश्यकताओं का अनुपालन करते हैं। इसके अतिरिक्त, नीले जैसा रंग एक स्थान से दूसरे स्थान में निर्बाध रूप से संक्रमण में मदद कर सकता है।

वास्तु के अनुसार पूजा कक्ष के लिए किन रंगों से बचना चाहिए?

वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार, पूजा कक्ष या पूजा इकाई के लिए हल्के, चमकीले और शांत रंग सबसे अच्छे विकल्प हैं।

इसका मतलब है कि आपको गहरे रंगों से बचना चाहिए जो सकारात्मकता और प्रकाश की श्रृंखला को तोड़ते हैं।

उदाहरण के लिए, काला एक ऐसा रंग है जिससे आपको किसी भी कीमत पर पूजा कक्ष के लिए बचना चाहिए।

पूजा पाठ करने के बाद भी दरिद्रता नहीं छोड़ रही घर का पीछा?

आपको मंदिर में घंटी रखनी है और पूजा के बाद आपको नियमानुसार घंटी बजानी है। इससे भी नकारात्मक ऊर्जा चली जाती है।

मंदिर का दीपक हमेशा दक्षिण-पूर्व कोने में रखना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि दीपक किसी भी प्रकार से जमीन पर ना लगे बहुत से लोग कहते हैं कि यह दुनिया के लिए बुरा होता है‌।

घर के मंदिर में रखी देवी-देवताओं की मूर्तियां कभी भी 2 इंच से कम और 9 इंच से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 

वास्तु के अनुसार भगवान की मूर्तियां एक-दूसरे के सामने नहीं होनी चाहिए। इतना ही नहीं एक ही देवता की दो तस्वीरें या मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। इसे अशुभ माना जाता है। यह सुनिश्चित करें कि भगवान की तस्वीर या मूर्ति दीवार से चिपकी तो नहीं है।

ठाकुर घर और पानी का उपयोग

ठाकुर के घर में प्रवेश करते समय हाथ-पैर अवश्य धोना चाहिए। वास्तु का कहना है कि इस नियम का पालन करने के साथ ही घर में शांति बहाल करने के लिए पूजा के घर में तांबे के बर्तन में पानी रखना जरूरी है।

दीपक कहाँ लगाएं?

पूजा घर के दीपकों को देवता के घर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। यदि कोई दीपक या प्रकाश हो तो उसे घर के दक्षिण पूर्व दिशा में रखना चाहिए।

फर्श की सजावट

हम आमतौर पर रंगोली को अलग-अलग मौकों पर भगवान के ठीक सामने बनाते हैं। दीवार के रंग से मेल खाने के लिए स्थायी रंगोली को रंग से रंगा जा सकता है। साथ ही एक छोटा कालीन या गलीचा भी रखा जा सकता है। इस पर छोटे-छोटे कुशन देखकर अच्छा लगता है। पूजा के घर के फर्श पर बड़े फूलदान भी रखे जा सकते हैं। इसे रोजाना ताजे फूलों से भरा जा सकता है।

चंद्र ग्रहण का स्वास्थ्य पर क्या फर्क पड़ता है?

चंद्र ग्रहण का स्वास्थ्य पर क्या फर्क पड़ता है?

चंद्र ग्रहण एक ऐसी स्थिति है। जो तब होती है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में चला जाता है। ऐसी परिस्थिति में सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक साथ मिल जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि पूर्णिमा की रात को होने वाले चंद्र ग्रहण का आपके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

विज्ञान को अभी तक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को चंद्र ग्रहण के साथ जोड़ने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। लेकिन दुनिया भर के लोगों को लगता है कि ग्रहण लोगों की सामान्य स्थिति को भी जोखिम वाला कर देता है। आइए चंद्र ग्रहण के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों से संबंधित विभिन्न धारणाओं को जानने का प्रयास करते हैं।

चंद्र ग्रहण का स्वास्थ्य पर होने वाला प्रभाव

पारंपरिक मान्यताओं से यह संकेत मिलता है कि चंद्र ग्रहण के दौरान निकलने वाली चंद्रमा की तेज जिसे पराबैंगनी किरणें भी कहते हैं। यह ग्रहण वाले दिन पहले से पके भोजन कर बुरा छाप छोड़ देता है। जो खाने के चीज को असुरक्षित बना देता हैं। यह भी माना जाता है कि ग्रहण पीने वाले पानी को भी दूषित कर देता है।

त्वचा पर प्रभाव

लोकप्रिय मान्यता के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान शरीर में कई बदलाव हो सकते हैं। प्राचीन भारतीय शास्त्र बताते हैं कि चंद्र ग्रहण त्वचा को प्रभावित कर सकता है और त्वचा रोगों के विकास की संभावना को बढ़ा सकता है। यह माना जाता है कि चंद्र ग्रहण समय के दौरान असंतुलन का अनुभव हो सकता है, जिससे त्वचा की समस्या भी हो सकती है।

चंद्र ग्रहण आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है

सूर्य ग्रहण की तुलना में चंद्र ग्रहण उतना हानिकारक नहीं है। हालांकि, यह माना जाता है कि इससे निकलने वाली रोशनी आपकी आंखों को नुकसान पहुंचा सकती है। यही वजह है कि ग्रहण देखने के लिए एक सुरक्षात्मक आई-गियर पहनना चाहिए।

गर्भवती महिलाएं बरतें सावधानी

फिर भी एक अन्य मान्यता का दावा है कि चंद्र ग्रहण के दौरान उत्पन्न हानिकारक विकिरण गर्भवती महिलाओं और उनके अजन्मे बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते हैं।  चंद्र ग्रहण के दौरान, गर्भावस्था से निपटने वाली महिलाओं को घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है। 

पारंपरिक मान्यताएं यहां तक ​​कि महिलाओं से इस दौरान खाने, पीने और सोने का आग्रह भी नहीं करती हैं। हालाँकि, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, इसे साबित करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।

चंद्र ग्रहण से हार्मोनल असंतुलन हो सकता है और एक महिला के मासिक धर्म में उतार-चढ़ाव हो सकता है। जबकि एक महिला के मासिक धर्म चक्र आमतौर पर 28 दिनों का होता है। एक चंद्र चक्र 29.5 दिनों का होता है। पारंपरिक मान्यताओं का दावा है कि चंद्र ग्रहण और मासिक धर्म के बीच एक संभावित संबंध है, इसे साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है।

इसके अलावा, यह देखते हुए कि चंद्रमा उर्वरता का प्रतीक है, लोकप्रिय मान्यताएं बताती हैं कि यह महिलाओं को गर्भ धारण करने के लिए एक आदर्श समय है।

आपके पाचन को प्रभावित करता है

चंद्र ग्रहण के दौरान उत्पन्न किरणें भोजन को दूषित करती हैं। इस दौरान कुछ भी खाने से आपका कफ तत्व बढ़ सकता है, जो पहले से ही ग्रहण के कारण बढ़ गया है। इससे खुजली, सुस्ती, अपच या सूजन हो सकती है। इसलिए ग्रहण के समय कुछ भी नहीं खाने की सलाह दी जाती है। अपने शरीर पर कफ के प्रभाव को कम करने के लिए आप सोंठ और पानी का सेवन कर सकते हैं। आप काली मिर्च या तेज पत्ता जैसे मसाले भी कम मात्रा में ले सकते हैं।

पैर की उंगलियां बता सकती हैं महिलाओं का असली चरित्र

पैरों की उंगलियों के माध्यम से भाग्यशाली होने का पता कैसे लगाएं?

ऐसा माना जाता है कि एक व्यक्ति का पैर उनके भाग्य, व्यक्तित्व, भूत और भविष्य, प्रकृति के बारे में सब कुछ बता सकते हैं। क्या आप भी अपने पैरों की उंगलियों के माध्यम से अपने भाग्य को जानना चाहते हैं। तो सबसे पहले अपने पैरों का ख्याल रखना आरंभ कर दीजिए। अपने पैरों के तलवे के नीचे कभी भी धूल या मिट्टी जमने ना दीजिए। जितना हो सकें अपने पैरों को साफ सुथरा करके रखने की कोशिश कीजिए।

क्या कहती है, पैरों की उँगलियाँ : पैरों की उंगलियों में छिपा है आपकी जिंदगी का राज

एक मोटी तर्जनी और लंबा छोटा पैर का अंगूठा लंबे जीवन और धन का प्रतीक माने जाते है। यदि किसी व्यक्ति के पास ये दोनों हैं, तो उनके जीवन में लंबे समय तक चलने वाली समृद्धि पर विचार करें।

यदि किसी के पैरों की तर्जनी और अंगूठे दोनों की ऊंचाई समान हो, तो यह इस बात का संकेत है कि व्यक्ति का जीवन खुशहाल होगा।

पैरों की उंगलियां यदि समान हो तो

सभी पैर की उंगलियों की बिल्कुल समान लंबाई का मतलब है कि व्यक्ति एक पदस्थ पद का नेतृत्व करेगा। वहीं यदि किसी भी दो पैर की उंगलियों की लंबाई समान नहीं है और सभी की ऊंचाई अलग-अलग है, तो यह इस बात का संकेत है कि व्यक्ति के पास बड़ी और स्वस्थ संतान होगी।

पैर का अंगूठा और सभी उंगलियां बराबर हो। तो ऐसा इंसान सामान्य जीवन नहीं जीता। ऐसे लोग बहुत फेमस या बड़े इंसान तो बन जाते हैं। लेकिन यह लोग जीवन में कुछ भी नहीं कर पाते है और बहुत गरीब हो जाते हैं।

शंख के आकार का यदि पैर हो तो?

यदि किसी के पैरों के नीचे की रेखाएं शंख के आकार में मिल जाती हैं, तो यह इंगित करता है कि व्यक्ति अत्यधिक अपने जीवन में सफल होगा और उसे निरंतर सौभाग्य की प्राप्ति होती रहेगी। 

लक्जरी कार खरीदने का अवसर मिलता है

तलवों के तल से शुरू होकर बड़े पैर के अंगूठे के तक एक पतली लंबी रेखा का होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपने जीवन में बहुत पहले से ही शानदार वाहनों में यात्रा करना शुरू कर देगा।

एड़ी का आकार भी किसी के जीवन की यात्रा के बारे में भविष्यवाणी करता है। यदि यह आकार में गोल, मुलायम और सुंदर है, तो ग्लैमरस जीवन जीने की अपेक्षा करें। यदि तलव थोड़ा सख्त और परतदार है, तो संघर्षपूर्ण जीवन की अपेक्षा करें।

पैर के अंगूठे का नाखून

यहां तक ​​​​कि आपका प्राकृतिक पैर का रंग भी बता सकता है कि आप कैसे जीवन व्यतीत करेंगे। यदि पैर के अंगूठे के नाखून में तांबे के रंग का हल्का स्पर्श होता है तो व्यक्ति रॉयल्टी या अत्यंत उच्च आधिकारिक स्थिति की तरह बड़ा होता है।

पैर के अंगूठे का हल्का नीलापन एक औसत कामकाजी वर्ग के जीवन का संकेत देता है; उच्च लेखा पदों पर पीले रंग के पैर की अंगुली का नाखून संकेत। कोई रंग या नग्न रंग पैर की अंगुली का नाखून जीवन को बाधाओं से भरने का संकेत नहीं देता है।

पैर की उंगलियां बता सकती हैं महिलाओं का असली चरित्र

बड़े पैर का अंगूठा दूसरे से अगर छोटा हो तो

कुछ महिलाओं में, बड़ा पैर का अंगूठा अगले वाले से छोटा होता है। ऐसी महिलाओं के पति की इच्छा का पालन करने के लिए अनिच्छुक होने की सबसे अधिक संभावना है। वे छोटे स्वभाव के भी हो सकते हैं। 

हालाँकि, भले ही वे दूसरों की बात नहीं मानते हों, लेकिन ये महिलाएँ सक्षम हो सकती हैं और सभी आवश्यक कार्यों को स्वयं कर सकती हैं। उनमें नेतृत्व के गुण हो सकते हैं और समाज में प्रसिद्ध व्यक्ति भी बन सकते हैं।

दूसरा पैर का अंगूठा बड़े पैर के अंगूठे से लंबा

यदि बड़े पैर का अंगूठा अन्य पैर की उंगलियों से लंबा है, तो महिला ऊर्जावान और मेहनती होती है। उनके पास बहु-कार्य करने की एक विशेष क्षमता हो सकती है। उनके पास अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने के साथ-साथ अपनी इच्छाओं को वास्तविकता में बदलने के लिए आवश्यक कौशल भी हो सकता है।

ऐसी महिला को समय सीमा पर टिके रहने और कार्यों को पूर्णता से करने के लिए देखा जाता है। वह जीवनसाथी की सद्भावना अर्जित करने के प्रयास करने की भी कोशिश करती है।

इन सभी बातों के अतिरिक्त यदि किसी व्यक्ति के पैर का अंगूठा और उसके बगल वाली उंगली आपस में मिल जाती है। तो ऐसे लोगों का भाग्य बहुत बुरा होता है। ऐसे लोगों को कुछ भी अपनी जिंदगी में आसानी से नहीं प्राप्त होता। वह अगर अपनी तुलना किसी अन्य व्यक्ति से करेंगे। तो उनकी तुलना में अन्य लोगों को जो चीज जल्दी मिलती है। वह उनको 10 गुना मेहनत करने पर मिलता है। इन्‍हें अर्जित करने के लिए बहुत सारी मेहनत करनी पड़ती है। यहां तक की ऐसे लोगों का सारा पैसा संतान के ऊपर खर्च हो जाता है। ऐसे लोग कभी भी अपने ने पैसे का आनंद नहीं उठा पाते हैं।

पूजा घर में बिल्कुल भी न रखें ये चीजे वरना बरबाद हो जाओगे

जिनके भी घर में भगवान के लिए अलग घर होता है। जिसे आम भाषा में पूजा घर बसा जाता है। वहां भगवान के भक्त बड़े उत्साह के साथ भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करते हैं। वे हर संभव प्रयास करते हैं ताकि वे अपने परमेश्वर को प्रसन्न कर सकें।

भगवान का ध्यान रखने की चक्कर में कई बार भक्त छोटी लेकिन बहुत जरूरी बातों का ध्यान रखना ही भूल जाते हैं। वास्तु शास्त्र और पंडितों के मान्यताओं के अनुसार कई ऐसी सामग्री या चीजें हैं जिन्हें घर में रखना खासकर पूजा घर में रखना सही नहीं माना जाता है। 

ऐसी चीजों को मंदिर या पूजा घर से दूर रखने की हमेशा सलाह दी जाती है। कहा जाता है कि इससे पूजा करने का कोई फल नहीं मिलता है। पूजा घर में नहीं रखनी चाहिए 11 चीजों को जैसे-

पार्वती और गणेश की तस्वीर ज्यादा ना लगाएं

माता गौरी और पुत्र पार्वती के साथ के तस्वीर को तीन से अधिक पूजा घर में ना रखें। ऐसा माना जाता है कि गौरी गणेश की तीन मूर्तियों को पूजा घर में नहीं रखना चाहिए। कहा जाता है कि तीन मूर्तियां रखने से घर में अशांति का माहौल रहता है। ऐसा भी कहा जाता है कि घर में हमेशा भगवान गणेश की एक या दो मूर्तियां रखनी चाहिए।

एक से ज्यादा शंख ना रखें

घर के मंदिर में शंख रखना अच्छा माना जाता है, लेकिन केवल एक शंख रखना ज्यादा शुभ माना जाता है। ध्यान रखे कि घर के मंदिर में कभी भी एक से अधिक शंख ना रखें। कहते हैं अगर आपके घर के मंदिर में एक से अधिक शंख हों तो एक को ही रखें, बाकी को किसी पवित्र नदी में बहा दें या मंदिर में दान कर दें।

बड़ी मूर्ति की पूजा करने से बचे

अक्सर लोग घर के मंदिर में अपने प्रिय देवता की मूर्ति की स्थापना विधि-विधान से करते हैं। यह ज्ञात होना चाहिए कि घर के मंदिर में मूर्तियों की पूजा नहीं की जाती है, इसलिए ध्यान रखें कि घर के मंदिर में कभी भी बड़ी मूर्ति नहीं रखनी चाहिए। आप छोटी तस्वीर या मूर्ति रख सकते हैं। लेकिन १ फुट से अधिक कद‌ वाले भगवान की मूर्ति को ना रखें।

शिवलिंग ज्यादा बड़ा‌ ना रखें

बहुत से लोग भगवान भोलेनाथ के परम भक्त होते हैं। वे घर के मंदिर में शिवलिंग की पूजा कर भोलेनाथ को प्रसन्न करने में लीन हो जाते हैं। लेकिन ध्यान रखें कि घर के मंदिर में रखा शिवलिंग कभी भी अंगूठे के आकार से बड़ा नहीं होना चाहिए। ज्यादा बड़ा शिवलिंग घर की शांति को भंग कर देता है।

टूटे-फूटे मूर्तियों का बहिष्कार कीजिए

ऐसा कहा जाता है कि घर के मंदिर में कभी भी टूटी हुई मूर्तियों को नहीं रखना चाहिए। यहां तक की उनकी पूजा भी नहीं करनी चाहिए। कहते हैं ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा फैलती है, जिससे घर में अशांति का माहौल रहता है।

दिया में घी अच्छे से डालकर आरती  करें

ऐसा माना जाता है कि आरती के समय दीपक में कम से कम इतना घी अवश्य डालना चाहिए। जो आरती के पूरा होने तक जलेगा। कभी-कभी घी कम होने के कारण बीच आरती में ही दीपक बुझ सकता है। जिसे अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि ऐसा होने पर पूजा अधूरी मानी जाती है।

पूजा घर में हमेशा ताजे फूल भगवान को अर्पित करें। इसके अलावा जमीन पर गिरे फूल कभी भी भगवान को नहीं चढ़ाने चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि तुलसी के पत्ते 11 दिनों तक बासी नहीं होते हैं, इसलिए तुलसी के पत्तों पर पानी छिड़क कर उन्हें भगवान को अर्पित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

पूजा घर को आप अपनी मर्जी से जितना चाहे उतना डेकोरेट कर सकते हैं। लेकिन पूजा घर में भगवान कितने होंगे वह आप स्वयं निश्चित नहीं कर सकते हैं।

जितनी कम मूर्ति उतना बड़ा प्रमोशन। दिशा का ध्यान रखकर ही आगे बढ़े।

सुबह उठने से क्या वाक़ई में अमीर बनते हैं?

सुबह 8:00 बजे के बाद उठने वाले लोगों के लिए श्री कृष्ण भगवान क्या कहते हैं?

आपको बता दें कि शास्त्रों में स्नान से जुड़ी कई सारी बातों का जिक्र किया गया है। किस समय में स्नान करना चाहिए, यह बात भी बताया गया है। यहां तक की शास्त्रों में स्नान को चार भागों में बांटा गया है, साथ ही उनका नाम भी रखा गया है। जैसे-

मुनि स्नान – 

सुबह 4:00 से 5:00 बजे के समय को ब्रह्म मुहूर्त कहा जाता है। इस वक्त पर बहुत सारे लोग सुबह उठते हैं और स्नान ध्यान भी करते हैं। ऐसे लोगों द्वारा किए गए सामान को मुनि स्नान कहते है। 

शास्त्रों में मुनि स्नान को सबसे शुभ माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति प्रतिदिन मुनि स्नान करता है, उसके घर में हमेशा शांति बनी रहती है, साथ ही वह व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ रहता है और मन भी उसका शांत रहता है।

देव स्नान – 

ऐसा कहा जाता है कि सुबह 5-6 बजे के बीच जो व्यक्ति उठकर स्नान करते हैं। उनके द्वारा किए गए स्नान को देव स्नान कहा जाता है। साथ ही ऐसे व्यक्ति को अपने जीवन में प्रसिद्धि, सुख और शांति की भी प्राप्ति होती है।

मानव स्नान – 

मानव स्नान की बात यदि करें तो सुबह 6 से 8 बजे के बीच किया गया स्नान ही मानव स्नान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि मानव स्नान करने से व्यक्ति को अपने सभी कार्यों में सफलता मिलती है, इससे उसके सभी कार्य सफल भी होते हैं।

राक्षस स्नान – 

ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति सुबह 8 बजे के बाद स्नान करता है उसे राक्षस स्नान कहा जाता है। शास्त्रों में रक्षा स्नान को सबसे हीन माना गया है और मनुष्य को इससे बचना चाहिए।

हमारे द्वारा बताए गए इन 4 कैटेगरी के अंतर्गत जो व्यक्ति स्नान करते हैं। उनको शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग नाम दिया गया है। हर व्यक्ति को कोशिश करना चाहिए सुबह 8:00 बजे के अंदर स्नान करने का। यदि वह सुबह 8:00 बजे के अंदर स्नान करने में असफल होते हैं। तो उनके विषय में श्री कृष्ण भगवान ने बहुत कुछ कहा है।

आइए जानते हैं कि आखिर क्या कहा है श्री कृष्ण भगवान ने उन लोगों के लिए जो सुबह तो उठ जाते हैं। लेकिन अपने दिन की शुरुआत बिना नहाएं धोए करते हैं। आखिर क्या होता है ऐसे लोगों के साथ जो अपने दिन की शुरुआत बेड टी से करते हैं।

सुबह 8:00 बजे उठने वालों के लिए गरुड़ पुराण में कही गई श्री कृष्ण भगवान की बातें-

श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि संसार के सभी मनुष्यों को सुबह में जल्दी उठकर स्नान ध्यान करना चाहिए। मनुष्य का शरीर सिर्फ खा पीकर बड़ा होने के लिए नहीं बनाया गया है। बल्कि उस शरीर को ईश्वर के काम पर लगाने के लिए भी बनाया गया है। जब शरीर को ईश्वर ने दिया है। तो शरीर को ठीक से रखने का कर्तव्य भी मनुष्य का होना चाहिए।

जो लोग सुबह उठकर स्नान ध्यान ना करके अपना समय नष्ट करते हैं। ऐसे लोगों के लिए श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि ऐसे लोग मनुष्य जीवन के नाम पर कलंक है। जो सुबह उठ तो जाते हैं। लेकिन जल्दी नहाते नहीं है और अपना दिन बर्बाद करते हैं। ऐसे लोगों को अगली जिंदगी कीड़े-मकौड़े वाले प्राप्त होते है।

व्यक्ति भिन्न तरीके के रोगों से ग्रसित होता है

श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति कभी-कभी स्नान करने के समय में परिवर्तन करता है। तो वह बात अलग है लेकिन रोजाना यदि कोई व्यक्ति नियम अनुसार स्नान नहीं करता है। तो ऐसे व्यक्ति बहुत ज्यादा बीमार पढ़ते हैं क्योंकि जो शास्त्रों को नहीं मानता।

उसका शरीर शास्त्र का दुश्मन बन जाता है और उसे कई तरीके के रोगों से ग्रसित कर देता है। शरीर के अंदर भिन्न तरीके के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। इसलिए हर व्यक्ति को कोशिश करना चाहिए कि सुबह जल्दी उठकर जल्दी से नहा धोकर फ्री हो जाएं।

उसके बाद वह अपने जीवन के दिनचर्या को फॉलो करें और अपने जीवन में आगे बढ़े। लेकिन जो व्यक्ति नियमित रूप से स्नान नहीं करते हैं। शास्त्रों का पालन नहीं करते हैं। उन्हें शारीरिक तथा मानसिक तनाव एवं कई सारी बीमारियां भी हो सकती है। इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।और इसी के साथ सुबह जल्दी उठनेवाले स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे होते है, शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दृष्टि से अच्छे होते है।

हिंदू धर्म में अक्षय तृतीय का महत्व क्या होता है

देशभर में 3 मई को अक्षय तृतीया मनाई जाएगी। हिंदू धर्म में इस दिन का बहुत महत्व है। अक्षय तृतीया वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। कुछ खरीदने के लिए भी यह दिन शुभ माना जाता है। कई जगहों पर अक्षय तृतीया को आख तिज के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू समुदाय के अलावा, जैन धर्म के लोग भी इस दिन को मनाते हैं।

किसकी पूजा की जाती है?

 इस दिन भगवान विष्णु, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। जब कुछ नया शुरू करने की बात आती है, तो उस दिन को सबसे शुभ अवसरों में से एक माना जाता है

आइए जानते हैं कि हिंदू धर्म में अक्षय तृतीय का महत्व क्या होता है-

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु के दसवें अवतार परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया के दिन ही हुआ था। वहीं सत्य युग का अंत और त्रेता युग की शुरुआत भी अक्षय तृतीय से ही हुई।

अक्षय तृतीया ही वह दिन है। जिस दिन कृष्ण के मित्र सुदामा ने उन्हें भोजन कराया था। इसके बजाय, कृष्ण ने अपने प्रिय मित्र को सुख और समृद्धि का आशीर्वाद दिया था।

महाभारत के अनुसार अक्षय ने वन में रहते हुए द्रौपदी को अक्षयपात्र दिया था। ताकि जंगल में उनका खाना कभी खत्म ना हो। वेद पढ़ने वाले लोगों ने अक्षय तृतीया वाले दिन से महाभारत लिखना शुरू किया था।

अक्षय तृतीय के दिन ही भागीरथी की प्रार्थना में गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थी।

पुरी में जगन्नाथ की बारात के लिए रथों का निर्माण अक्षय तृतीय से ही शुरू हुआ था।

मरने वाला व्यक्ति स्वर्ग को पाता है

पारंपरिक मान्यता के अनुसार इस दिन यदि किसी की मृत्यु हो जाती है। तो उसे अमर स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस दिन कुबेर की तपस्या से संतुष्ट होकर महादेव ने उन्हें अतुलनीय ऐश्वर्य प्रदान किया था।

सोना- चांदी खरीदें

ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया में सोना या चांदी खरीदना बहुत शुभ होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन सोना या चांदी खरीदने से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन सोना खरीदने से परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस दिन से कोई नया व्यवसाय शुरू करना लाभदायक माना जाता है। इसके अलावा अक्षय तृतीय में प्रवेश करना, ध्यान करना और गायों को भोजन कराना शुभ कर्म माना जाता है। पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सभी पापों का नाश होता है और सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। इस दिन अगर कोई दान करता है तो उसका फल बरकरार रहता है।

अक्षय तृतीया क्या है?

संस्कृत में अक्षय शब्द का अर्थ कुछ ऐसा है। जो कभी समाप्त नहीं होता है या प्रकृति में शाश्वत है। यह शुभता और अच्छाई का प्रतीक है। इसलिए इस दिन आपसे सोना खरीदने, नया घर खरीदने या अपने जीवन के बड़े फैसले लेने की उम्मीद की जाती है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि इस तरह की खरीदारी या निर्णय फल देने की संभावना है।

अक्षय तृतीया का क्या महत्व है?

इस दिन सोना-चांदी खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। ये धातुएं देवी लक्ष्मी का प्रतीक हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर आप इस त्योहार पर सोने या चांदी में निवेश करते हैं, तो देवी आपको बहुतायत में धन और समृद्धि का आशीर्वाद देगी। यह एक महत्वपूर्ण अक्षय तृतीया महत्व है जिसे आपको जानना आवश्यक है।

कोई भी शुभ काम कर सकते हैं

यदि आप इस दिन गृह प्रवेश करने की योजना बना रहे हैं, तो आपको मुहूर्त के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आप दिन में किसी भी समय नए घर में प्रवेश कर सकते हैं। साथ ही, इस दिन दान करने से भी दाता के जीवन में कई सकारात्मक परिणाम आते हैं। 

इसके अलावा, यदि आप अक्षय तृतीया के दिन कोई व्यवसाय शुरू करते हैं, तो यह निश्चित रूप से फलता-फूलता है। बहुत से लोग इस दिन अपने पापों को धोने के लिए गायों को चारा भी खिलाते हैं।

अक्षय तृतीया के दिन घटी थीं ये पौराणिक घटनाएं

श्री कृष्ण का अक्षय तृतीया से क्या संबंध है?

वृंदावन की पवित्र नगरी अपने खूबसूरत त्योहारों और अनूठी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। वृंदावन की होली जहां पूरी दुनिया में मशहूर है, वहीं क्या आप जानते हैं कि अक्षय तृतीया भी वृंदावन में खास तरीके से मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन घटी थीं ये पौराणिक घटनाएं

अक्षय तृतीया पर क्या-क्या होता है?

अक्षय तृतीया के दिन घर पर पूजा करना हिंदू घरों में बहुत लोकप्रिय माना जाता है। हालांकि, इस दिन का महत्व सदियों पुराना है। यह एक ऐसा दिन है जब इतिहास पौराणिक कथाओं के साथ घुल-मिल जाता है।

यहाँ कुछ चीजें हैं। जिनके बारे में माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर हुई थीं-

त्रेता युग की शुरुआत 

माना जाता है कि सतयुग के बाद का युग इसी दिन शुरू हुआ था। अर्थात त्रेता युग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से हुई थी।

महाभारत की पटकथा शुरू हुई

ऐसा माना जाता है कि वेद व्यास और भगवान गणेश ने इसी दिन को महान महाकाव्य भी लिखना शुरू किया था।

धरती पर उतरी थी मां गंगा

इस दिन पवित्र नदी गंगा धरती पर अवतरित हुई थी।

देवी अन्नपूर्णा का जन्म

इसी दिन भोजन की देवी अन्नपूर्णा का भी जन्म हुआ था। अक्षय तृतीया पर भी अन्नपूर्णा ने भिखारी के वेश में शिव को खिलाया था।

भगवान परशुराम का हुआ था जन्म

इसी दिन को विष्णु भगवान का छठा रूप अवतरित हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन घटी थीं ये पौराणिक घटनाएं

युधिष्ठिर ने प्राप्त किया अक्षय पत्र

युधिष्ठिर की प्रार्थनाओं से प्रसन्न होकर,  सूर्य भगवान ने उन्हें अक्षय पत्र का आशीर्वाद दिया था। जो उन्हें अगले 12 वर्षों के लिए भोजन की एक अटूट आपूर्ति प्रदान करेगा।

श्रीकृष्ण और अक्षय तृतीया का संबंध

भगवान श्री कृष्ण का अक्षय तृतीया के साथ बहुत ही गहरा संबंध है। वह संबंध क्या है आइए जानते हैं-

द्रौपदी

किंवदंती है कि एक बार जब श्री कृष्ण अपने अनुचर के साथ पांडवों के पास गए, तो निर्वासित पांडव भाइयों ने उन्हें पूरे सम्मान के साथ स्वागत किया। हालांकि, द्रौपदी उस वक्त अपनी रसोई से बाहर नहीं आई। जब द्रोपदी श्री कृष्ण के आने के बाद बाहर नहीं आई। तब कृष्ण को यह महसूस हुआ कि कुछ गड़बड़ है। फिर वह द्रौपदी के रसोई में प्रवेश कर गए। 

जब श्रीकृष्ण अंदर पहुंचे तो उनको द्रौपदी एक अश्रुपूर्ण अवस्था में हाथ में एक एक खाली कटोरा लिए खड़ी दिखाई दी। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि अभी यहीं है उनके पास रसोई में।

दूसरी ओर, श्रीकृष्ण ने अपनी बहन से पूछा, क्या कटोरा सचमुच खाली है क्योंकि उसमें चावल का एक दाना चिपका हुआ था। श्रीकृष्ण के पास एक ही दाना था और जैसे ही उन्होंने उस दाने को ग्रहण किया, पूरे ब्रह्मांड की भूख तृप्त हो गई। अक्षय तृतीया पर हुआ ये चमत्कार आज भी प्रासंगिक हैं।

सुदामा

कृष्ण और सुदामा अपने बचपन के दिनों से ही सबसे अच्छे दोस्त हैं। हालांकि, समय के साथ दोनों दोस्त अलग हो गए। सुदामा ने वेदों का अनुसरण किया और श्रीकृष्ण द्वारका के राजा बने। एक दिन, जब एक गरीब ब्राह्मण सुदामा ने अपने बेटे के हाथ में एक मोर पंख देखा, तो उसे अपने मित्र कृष्ण की याद आई। उनकी पत्नी ने सुझाव दिया कि उन्हें अपने दोस्त से मिलने और आर्थिक मदद मांगने के लिए द्वारका जाना चाहिए। 

हालाँकि पहले तो अनिच्छुक रहे, सुदामा ने अपनी पत्नी के प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की और अपने लंबे समय से खोए हुए दोस्त से मिलने के लिए अपनी यात्रा शुरू की। वह अपने साथ चपटा चावल या पोहा ले गए क्योंकि कृष्ण इसे एक बच्चे के रूप में प्यार करते थे। जब कृष्ण सुदामा से मिले, तो वे बहुत खुश हुए। उसने अपने मित्र की ओर गर्मजोशी से आतिथ्य किया और सुदामा से पूछा कि वह उसके लिए क्या लाया है। 

गरीब ब्राह्मण द्वारका के राजा को वह छोटा पोहा देने के लिए शर्मिंदा था जो वह ले जा रहा था। हालाँकि, कृष्ण को अपने मित्र का विचारशील उपहार बहुत पसंद आया। सुदामा कोई आर्थिक मदद नहीं मांग सके और अपने घर के लिए निकल पड़े। हालाँकि, श्री कृष्ण ने सुदामा को समझा और उन्हें धन का आशीर्वाद दिया। जब सुदामा घर पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि रातों-रात एक महलनुमा इमारत ने उनकी विनम्र झोपड़ी को बदल दिया था! ऐसा अक्षय तृतीया पर हुआ था।

वृंदावन में अक्षय तृतीया का पर्व

अक्षय तृतीया पर, वृंदावन मंदिरों में मूर्तियों को सिर से लेकर पैर तक चंदन के साथ लगाया जाता है। इसे चंदन यात्रा के नाम से जाना जाता है। बढ़ते तापमान से देवताओं को कुछ राहत देने के लिए चंदन लगाया जाता है।

बिहारी जी के चरणों के दर्शन

अक्षय तृतीया पर ही भक्तों को बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं। पूरे वर्ष के दौरान यह एकमात्र समय है जब यह संभव है। अक्षय तृतीया पर वृंदावन में इस शुभ दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है।

बांके बिहारी मंदिर से कृष्ण भूमि सिर्फ 10 मिनट की दूरी पर है। जब आप कृष्ण भूमि पवित्र दिवस के सदस्य बन जाते हैं, तो आप कृष्ण भूमि में अपने घर में रहकर इस पवित्र भूमि की महिमा में विसर्जित कर सकते हैं।

अक्षय तृतीया के दौरान अनुष्ठान

विष्णु के भक्त इस दिन व्रत रखकर देवता की पूजा करते हैं। बाद में गरीबों को चावल, नमक, घी, सब्जियां, फल और कपड़े बांटकर दान किया जाता है। भगवान विष्णु के प्रतीक के रूप में चारों ओर तुलसी का जल छिड़का जाता है।

पूर्वी भारत में, यह दिन आगामी फसल के मौसम के लिए पहली जुताई के दिन के रूप में शुरू होता है। साथ ही, व्यवसायियों के लिए, अगले वित्तीय वर्ष के लिए एक नई ऑडिट बुक शुरू करने से पहले भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसे ‘हलखाता’ के नाम से जाना जाता है।

इस दिन बहुत से लोग सोने और सोने के आभूषण खरीदते हैं। चूंकि सोना सौभाग्य और धन का प्रतीक है, इसलिए इस दिन इसे खरीदना पवित्र माना जाता है।

Surya grahan 2022 | सूर्य ग्रहण 2022 एवं उसका असर

सूर्य ग्रहण 2022 एवं उसका असर

वर्ष 2022 का पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल (शनिवार) को होगा। इस वर्ष कुल दो आंशिक सूर्य ग्रहण होगा। उनमें से पहला ग्रहण ही 30 तारिख को होने वाला है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि इस साल का कोई भी ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इसलिए भारत देश के लोगों इन ग्रहण से डरने की आवश्यकता नहीं है।

ज्योतिष के अनुसार, दक्षिण अमेरिका, अटलांटिक महासागर, अंटार्कटिक महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ हिस्सों में रहने वाले लोग ही इस आंशिक ग्रहण को देख पाएंगे।

2022 का दूसरा ग्रहण 25 अक्टूबर को लगने वाला है। इन दो ग्रहणों के बाद, 2023 तक अब कोई सूर्य ग्रहण नहीं होने वाला है। 

सूर्य ग्रहण क्या है?

सूर्य ग्रहण तब होता है। जब चंद्रमा ठीक उसी समय पृथ्वी और सूर्य के बीच से गुजरता है। जिस क्षण में चंद्रमा सूर्य को छुपा लेता है और उसकी किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोकता है। परिणाम स्वरूप, इस दुर्लभ घटना को ही सूर्य ग्रहण कहा जाता है।

सूर्य ग्रहणों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है। जैसे-कुल, कुंडलाकार, आंशिक और संकर ग्रहण होते हैं। इस वर्ष दो आंशिक (सूर्य ग्रहण) और दो कुल (चंद्र ग्रहण) लगेंगे। हालांकि, प्रत्येक ग्रहण केवल एक विशिष्ट स्थान या क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए ही देखा जा सकेगा।

सूर्य ग्रहण का समय

भारतीय मानक समय (IST) के अनुसार, सूर्य ग्रहण / सूर्य ग्रहण दोपहर 12:15 बजे शुरू होगा और शाम 4:07 बजे समाप्त होगा। यह लगभग तीन घंटे बावन मिनट तक चलेगा।यह ग्रहण 30 अप्रैल की शाम को लगभग 4:41 बजे अपने चरम चरण में पहुंच जाएगा। इस दौरान चंद्रमा की छाया पृथ्वी के केंद्र पर पड़ेगी। 30 अप्रैल को लगने वाला सूर्य ग्रहण सूर्य के अधिकतम 54 प्रतिशत हिस्से को अस्पष्ट कर देगा।

यह ग्रहण भारत में क्यों नहीं दिखाई देगा?

रिपोर्टों से पता चला है कि आगामी सूर्य ग्रहण आंशिक है, इसलिए यह भारत में दिखाई नहीं देगा। यही कारण है कि इस बार भारत में सूतक काल को नहीं मनाया जाएगा।

कैसे देखें सूर्य ग्रहण?

बहुत से लोग सूर्य ग्रहण को अपनी आंखों से देखने की प्रक्रिया का आनंद लेते हैं। लेकिन लोगों को यह साहस करने से बचना चाहिए। ग्रहण को देखने के लिए लोगों को सुरक्षात्मक चश्मा पहनना चाहिए या दूरबीन या एक बॉक्स प्रोजेक्टर के माध्यम से आकाश में होने वाले सभी घटनाओं को देखना चाहिए।

क्या आने वाले सूर्य ग्रहण का किसी राशि के ऊपर असर पड़ेगा?

जी, हां आने वाले सूर्य ग्रहण का कुछ राशियों पर असर पड़ने वाला है। डरने की जरूरत नहीं है। यह असर बुरा नहीं अच्छा पढ़ने वाला है। आइए जानते हैं कौन सी है वह राशियां जिनके ऊपर आने वाले सूर्य ग्रहण का अच्छा असर पड़ने वाला है।

वृषभ राशि

ज्योतिष आचार्य के अनुसार कहा जा रहा है कि इस बार आने वाले सूर्य ग्रहण का सबसे अच्छा असर वृषभ राशि पर पड़ने वाला है। इस राशि के लोगों की आर्थिक परिस्थितियां मजबूत होगी। साथ ही इनके कई सारे काम जो पहले से रुके हुए हैं। वह पूरे हो जाएंगे।

कर्क राशि

वृषभ राशि के बाद कर्क राशि के संबंध में कहा गया है कि इस राशि के लोगों को भी सूर्य ग्रहण के वजह से लाभ ही होगा। इनको अपने हर अच्छे कामों में सफलता मिलेगी। यहां तक कि अपने दोस्तों का भी पूर्ण रूप से साथ मिलेगा। सूर्य ग्रहण के कारण कर्क राशि के लोगों का भाग्य चमकेगा। उन्हें अपने योग्यताओं के बल पर जिंदगी में आगे बहुत कुछ बड़ा करने का मौका मिलेगा।

तुला राशि

आने वाले सूर्य ग्रहण के कारण तुला राशि को अपने कार्य क्षेत्र में एक अलग पहचान प्राप्त होगा यदि वह अभी से ही अपने जीवन के लक्ष्यों को तय करेंगे। तो मेहनत के बल पर वह अपने आप को किसी अच्छे स्थान पर देख पाएंगे।

धनु राशि

धनु राशि के जो व्यक्ति सरकारी नौकरी करते हैं। उन्हें आने वाले सूर्य ग्रहण के कारण बहुत अच्छा परिणाम मिलेगा। ग्रहण काल के दौरान यदि धनु राशि के लोग भगवान का नाम जाप करेंगे। तो उन्हें अपने जीवन में सफलता हासिल होगी।

निष्कर्ष

30 अप्रैल को जो सूर्य ग्रहण आने वाला है। वह सूर्य ग्रहण भारत में संपूर्ण रूप से आंशिक होने वाली है। अर्थात यह ग्रहण भारत के लोग बिल्कुल भी नहीं देख पाएंगे। इसका असर भारत से दूर अन्य अन्य देशों में होने वाली है।

इसलिए भारत के लोगों को आने वाली सूर्य ग्रहण से डरने की जरूरत नहीं है। इसके अतिरिक्त ज्योतिष आचार्यों का कहना है कि आने वाले सूर्य ग्रहण भले ही भारत में ना दिखाई दे परंतु, उस सूर्य ग्रहण के कारण राशि नक्षत्र में जो परिवर्तन होंगे। उसका असर कुछ राशि के लोगों के जीवन में देखा जाएगा जिनमें से प्रमुख वृषभ राशि, कर्क राशि, तुला राशि एवं धनु राशि के लोग।

घर के पूजा घर में यह मूर्तियां साथ में नहीं होनी चाहिए?

घर के पूजा घर में यह मूर्तियां साथ में नहीं होनी चाहिए?

हममें से अधिकांश लोगों के घर में मंदिर होता है। जबकि हमें पता भी नहीं है कि जिस स्थान पर मंदिर है, वह स्थान प्रतिदिन प्रार्थना के लिए हैं या नहीं। फिर भी हम सबके निवास में भगवान का निवास होता है। इसलिए इसे यथासंभव स्वच्छ और परिपूर्ण रखने के प्रयास किए जाने चाहिए। हालाँकि, क्या आप जानते हैं कि कुछ खास तरह की मूर्तियाँ हैं जिन्हें आपके घर के मंदिर में नहीं रखना चाहिए?

पीठ पीछे करने वाले भगवान

आपके मंदिर में ऐसी मूर्ति नहीं होनी चाहिए जिसकी पीठ आपके सामने हो। इतना ही नहीं, आदर्श रूप से आपको कभी भी भगवान की पीठ नहीं देखनी चाहिए। इसलिए भले ही आपकी सभी मूर्तियाँ अपने आप खड़ी हों, अपनी पीठ को ढकी हो।  ये चाहिए किसी भी दिशा से दिखाई नहीं दे रहा है।

प्रतिलिपि

आपके घर के मंदिर में एक ही भगवान की कोई दो मूर्तियाँ नहीं होनी चाहिए। चाहे वे एक दूसरे से थोड़ी अलग ही क्यों ना दिखें। यदि आपको अभी भी उन्हें रखना है, तो एक मूर्ति और दूसरे को चित्र के रूप में उपयोग करें, लेकिन दो समान मूर्तियों का उपयोग न करें।

चिपकी हुई मूर्ति

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक मूर्ति का क्या महत्व है या वह कितनी पुरानी है। एक छिली हुई मूर्ति का आपके घर के मंदिर में कोई स्थान नहीं है। आपको इसे अपने मंदिर से दूर एक स्थान पर रखना चाहिए और बाद में इसे किसी धार्मिक जल सहायक नदी में अर्पित करना चाहिए। आप पीपल के पेड़ के नीचे चिपकी हुई मूर्ति को भी छोड़ सकते हैं।

लड़ाई करने वाले भग्वान को ना रखें

आपके पास ऐसी मूर्तियाँ भी होनी चाहिए जो देवताओं को किसी से लड़ते हुए या किसी चीज़ को नष्ट करते हुए दिखाती हों। भले ही वह मानवता के लाभ के लिए ही क्यों न हो। यह आपके और आपके परिवार के लिए अशुभ बताया गया है।

अत्यधिक भावनाओं वाली मूर्तियाँ ना रखें

एक नटराज, भले ही वह सुंदर दिखता हो, वास्तव में शिव के क्रोध और उसके द्वारा किए जा सकने वाले विनाश का प्रतीक है। इसलिए ऐसी मूर्तियों को अपने मंदिर में रखने से कम से कम बचें।

मंदिरों के लिए वास्तु टिप्स

वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर या कार्यालय में एक मंदिर अंतरिक्ष को हानिकारक तरंगों से बचाता है। यह हमारी मदद कर सकता है जब हम क्रोधित, उदास या डरे हुए होते हैं। इसलिए अन्य कमरों की तरह, मंदिर पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

ऊंचाई

सभी मंदिर जमीन से कुछ इंच ऊपर स्थित होने चाहिए। आदर्श रूप से, मूर्ति का आकार व्यक्ति की छाती के साथ-साथ चलना चाहिए। ऊंची मूर्ति का मतलब है कि व्यक्ति भगवान का चेहरा नहीं देख पा रहा है और निचली मूर्ति का मतलब है कि हम भगवान के प्रति अनादर दिखा रहे हैं।

इसे आरामदायक बनाएं

सुनिश्चित करें कि आपका पूजा कक्ष बैठने / खड़े होने के लिए आरामदायक है। यदि यह बहुत ठंडा है, तो इसे इन्सुलेट करने पर विचार करें – यदि प्रकाश खराब है, तो अधिक रोशनी डालें। याद रखें, हमारी तरह, भगवान को भी अपने स्थान में सहज होने की आवश्यकता है।

रोशनी की दिशा

जब भी दीया या मोमबत्तियां जलाएं, उन्हें मंदिर के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में रखें। ऐसा कहा जाता है कि इससे न केवल घर में सकारात्मकता आती है, बल्कि समृद्धि भी आती है। अपने मंदिर में चमकीले रंग की रोशनी स्थापित करें।

दिशा

मंदिर की स्थापना के लिए घर के उत्तर-पूर्वी या पूर्वी हिस्से का उपयोग करें। ऐसा कहा जाता है कि घर का उत्तर-पूर्वी कोना सबसे शुभ होता है और जब तक आपके पास किचन या बाथरूम न हो, आप इस कोने का उपयोग मंदिर के लिए कर सकते हैं।

पूर्व की ओर मुख करना

पूजा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि ऐसा करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर हो। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करते समय आपकी सभी प्रार्थनाएं सीधे भगवान के पास जाती हैं। इसके अलावा आप मंदिर की पश्चिम दिशा में भी पूजा कर सकते हैं।

पानी

जल एक गृह मंदिर का एक महत्वपूर्ण घटक है — आपके घर के मंदिर में पानी से भरा तांबे का बर्तन होना चाहिए जिसे प्रतिदिन बदलना चाहिए। आप मंदिर के अंदर एक जल पिरामिड भी रख सकते हैं।

फोटो

बहुत से लोग अपने शोक संतप्त रिश्तेदारों की तस्वीरें मंदिर में लगाते हैं। हालांकि यह एक नेक विचार है, लेकिन ऐसा करना सही नहीं है। ब्रह्मांड का नियम कहता है कि नश्वर और अमर कभी एक साथ नहीं आ सकते हैं और मनुष्य मृत्यु के बाद भी नश्वर रहता है। हालाँकि आप उनकी तस्वीरें उसी कमरे में लगा सकते हैं।

घर के पूजा मंदिर में मूर्ति स्थापित करने के नियम

सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र और कार्तिकेय को विभिन्न मंदिर वास्तु युक्तियों के अनुसार घर के पूर्व दिशा में पश्चिम दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए। गणेश, दुर्गा, भैरव, षोडस, कुबेर, मातृका को उत्तर दिशा में दक्षिण की ओर मुख करके बैठना चाहिए।

भगवान हनुमान को हमेशा दक्षिण पूर्व दिशा का सामना करना चाहिए क्योंकि दक्षिण पूर्व अग्नि की दिशा है। यदि आपके पास शिवलिंग है, तो उसे घर के उत्तरी भाग में रखना चाहिए। घर के मंदिर में पूजा कक्ष में देवताओं को रखने के लिए उत्तर पूर्व दिशा सबसे शुभ दिशा है।

क्या हम विष्णु की मूर्ति को घर में रख सकते हैं?

भगवान विष्णु की मूर्ति को आप घर में रख सकते हैं लेकिन हमेशा याद रखें कि मूर्ति को मंदिर में ही रखें। साथ ही इसे इस तरह लगाएं कि इसका पिछला हिस्सा दिखाई दे। अपने मंदिर में कभी भी भगवान विष्णु की मूर्ति को अकेले न रखें।

क्या हम कुबेर की मूर्ति को घर के मंदिर में रख सकते हैं?

जी हां, आपके मंदिर में कुबेर की मूर्तियां स्थापित की जा सकती हैं। ऐसा कहा जाता है कि अगर इसे सही तरीके से रखा जाएं। तो यह आपके घर में भाग्य और समृद्धि भी लाता है।